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रसखान का जीवन परिचय एवं साहित्य रचना | raskhan ka jivan parichay

 रसखान का जीवन परिचय 


हिन्दी साहित्य और ब्रज-भाषा प्रेमी कृष्णभक्त मुसलमान कवियों में रसखान अग्रगण्य हैं। विद्वानों द्वारा इनका मूल नाम सैयद इब्राहिम माना जाता है। इनका जन्म 1533 ई. में दिल्ली में हुआ माना जाता है। 

रसखान का जीवन परिचय एवं साहित्य रचना | raskhan ka jivan parichay



इनका जीवन वृत्त अभी भी अन्धकार में है अर्थात् विद्वानों के बीच इनके जन्म के सम्बन्ध में अभी भी मतभेद है। इनके द्वारा रचित ग्रन्थ 'प्रेमवाटिका' से प्राप्त संकेत के आधार पर इनका सम्बन्ध दिल्ली राजवंश से माना जाता है। रसखान रात-दिन श्रीकृष्ण भक्ति में तल्लीन
रहते थे। इन्होंने गोवर्धन धाम अर्थात् गोकुल में जाकर अपना जीवन श्रीकृष्ण के भजन-कीर्तन में लगा दिया। ऐसा कहा जाता है कि इनकी कृष्णभक्ति से प्रभावित होकर गोस्वामी विट्ठलनाथ जी ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया। इन्होंने गोस्वामी विट्ठलनाथ जी से वल्लभ सम्प्रदाय के अन्तर्गत पुष्टिमार्ग की दीक्षा ली थी। 



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वैष्णव धर्म में दीक्षा लेने पर इनका लौकिक प्रेम अलौकिक प्रेम में बदल गया |
और रसखान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त बन गए। ऐसी मान्यता है कि 'प्रेमवाटिका कुछ वर्ष बाद
(1614 ई.) इनकी अन्तिम काव्य कृति है। सम्भवतः इस रचना के 1618 ई. में इनकी मृत्यु हो गई।
साहित्यिक परिचय रसखान ने श्रीकृष्ण की भक्ति में पूर्ण रूप से अनुरक्त होकर अपने काव्य का
सृजन किया। अरबी और फारसी भाषा पर इनकी बहुत अच्छी पकड़ थी। काव्य और पिंगलशास्त्र का भी इन्होंने गहन अध्ययन किया।
ये अत्यन्त भावुक प्रवृत्ति के थे। संयोग और वियोग दोनों पक्षों की अभिव्यक्ति इनके काव्य में देखने को मिलती है। कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम ने ही इन्हें कवि के रूप में पहचान दिलाई। इन्होंने पूर्णरूपेण समर्पित होकर कृष्ण के बाल रूप एवं यौवन के मोहक रूपों पर अनेक कविताएँ लिखी हैं। काव्य में जितने भी सौन्दर्य, गुण होते हैं, उनका प्रयोग इन्होंने अपनी कविताओं में किया है। सरसता, सरलता एवं माधुर्य इनके काव्य की विशेषताएँ हैं।

रसखान की कृतियाँ (रचनाएँ)

रसखान द्वारा रचित दो ही रचनाएँ उपलब्ध हैं-'सुजान रसखान' और 'प्रेमवाटिका।'

1. सुजान रसखान इसमें कवित्त, दोहा, सोरठा और सवैये हैं, यह 139
छन्दों का संग्रह है। यह भक्ति और प्रेम विषय पर मुक्त काव्य है।
2. प्रेमवाटिका इसमें केवल 25 दोहे हैं। इस रचना में प्रेम रस का पूर्ण परिपाक
हुआ है। रसखान की समग्र रचनाएँ कृष्णभक्ति एवं ब्रज प्रेम में लिप्त हैं।

रसखान जी की भाषा-शैली


इनकी कविता में जनसाधारण योग्य ब्रजभाषा का ही प्रयोग हुआ है। इनके काव्य में भाषा का स्वरूप अत्यन्त सरल व सहज है। अनेक स्थानों पर प्रचलित मुहावरों का प्रयोग इनकी रचनाओं में मिलता है। दोहा, कवित्त और सवैया तीनों छन्दों पर इनका पूर्ण अधिकार था। रसखान के सवैये आज भी कृष्ण भक्तों के लिए कण्ठहार बने हैं। अलंकारों के प्रयोग से भाषा का सौन्दर्य और भी बढ़ गया है। रसखान ने अपने काव्य में सरल और परिमार्जित शैली का प्रयोग किया है।

रसखान का हिन्दी साहित्य में स्थान


कृष्णभक्ति कवियों में रसखान का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। वे अपने प्रेम की तन्मयता, भाव-विह्वलता और आसक्ति के उल्लास के लिए जितने प्रसिद्ध हैं, उतने ही अपनी भाषा की मार्मिकता, शब्दों के चयन और व्यंजक शैली के लिए। उनका स्थान कृष्णभक्त कवियों में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इनकी भक्ति हृदय की मुक्त साधना है और इनका शृंगार वर्णन भावुक हृदय की उन्मुक्त अभिव्यक्ति है। इनके काव्य इनके स्वच्छन्द मन के सहज उद्गार हैं।

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